दो कानूनों के तहत केस नहीं झेलेंगे अब व्यापारी
हानिकारक खाद्य पदार्थों के बिक्री के आरोप में व्यापारियों को अब दोहरी कार्रवाई से मुक्ति मिल गई है। उन्हें अब दो अलग-अलग कानूनों के तहत मुकदमा नहीं झेलना पड़ेगा। सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद इस मामले में कार्रवाई अब केवल खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (एफएसएफए) 2006 की धारा-59 के तहत होगी। भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत मुकदमा नहीं दर्ज कराया जाएगा।
इससे पहले खाद्य या पेय पदार्थ में हानिकारक मिलावट के आरोप में खाद्य सुरक्षा अधिकारी एफएसएसए की धारा- 59 के साथ न्यायिक मजिस्ट्रेट, के न्यायालय में परिवाद दायर करने के साथ के ही आईपीसी की धारा-272 व 273 तहत भी एफआईआर दर्ज करा दिए करते थे। सर्वोच्च न्यायालय ने क्रिमिनल अपील (संख्या 472/2012) रामनाथ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य में विधिक व्यवस्था दे दी है कि एफएसएसए की धारा 59 और आईपीसी की धारा 272/273 के आरोप में अभियोजन साथ-साथ नहीं चल सकता। एफएसएसए के प्रावधान आईपीसी के प्रावधानों पर अधिमानी प्रभाव (ओवरराइड इफेक्ट), रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद आयुक्त खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की ओर से विभागीय अफसरों को केवल एफएसएसए के प्रावधानों के तहत ही कार्रवाई करने के। निर्देश दिए गए हैं। आयुक्त के पत्र के आधार पर डीजीपी मुख्यालय की ओर से पुलिस को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का पालन करने की हिदायत दी गई है।
नए कानून में बदली धाराएं
आईपीसी की धारा-272 व 273 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता 2023 में धारा-274 व 275 का प्रावधान है। इसके तहत भारत में खाद्य पदार्थों में मिलावट पर दंडात्मक प्रावधान किए गए हैं। धारा-274 में अधिकतम छह महीने या पांच हजार तक जुर्माने का प्रावधान है। एफएसएसएं में ज्यादा सजा का प्रावधान
एफएसएसए के तहत दर्ज मुकदमे में दोषसिद्ध होने पर आरोपी को तीन महीने से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। धारा 59 में चार उप धाराएं हैं, जिनमें अलग-अलग सजा का प्रावधान है।
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