Saturday, April 22, 2017

भारत के युवाओं,अब तो जागों



भारत के युवाओं,अब तो जागों !
वक्त पुकारता,अब तो जागों !
इंसानियत-सृष्टि की रक्षा हेतु, अब तो जागों !
प्रकृति की विनाशलीला देखकर,
अब तो जागों !
सहारा ढूंढ़तें हाथों को,
अब तो थामों !
मदद तलाशती आँखों की,
आशादीप अब बूझने न दों !
यहीं राष्ट्रधर्म है ! अब तो जागों !
भारत के युवाओं,अब तो जागों !
वक्त पुकारता,अब तो जागों !
इंसानियत-सृष्टि की रक्षा हेतु, अब तो जागों !
चित्कारतें पशु-पक्षियों के अस्तित्व ,अब तो बचाओं !
क्रंदन-प्रलय देख ! टूटते पहाड़,उफनती-हहराती नदियाँ, मूसलाधार बारिश !
प्रकृति का कोपित-आक्रोश देख!
भारत के युवाओं, अब तो जागों !
भारत के युवाओं,अब तो जागों !
वक्त पुकारता,अब तो जागों !
इंसानियत-सृष्टि की रक्षा हेतु, अब तो जागों !

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