तम्बाकू निषेध दिवस/Abhishek umar vaishy
विश्व तम्बाकू निषेध दिवस परहर फिक्र को धुएं में मत उड़ाइये
आज विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है। तम्बाकू जानलेवा बीमारी कैंसर होने की बहुत बड़ी वजहों में से है और अगर ईश्वर की दी गई इस अनमोल जिन्दगी को बचाना चाहते हैं तो इससे बचने की जरूरत पड़ती है। लापरवाह जिन्दगी जीने वाले लोग हमेशा एक ही जुमला बोलते हैं, मौत अंतिम सत्य है और उसका दिन निश्चित होता है। मगर मैडिकल विज्ञान की जानकारियों पर विश्वास करें, जैसा कि करना हमारी मजबूरी भी है और जरूरत भी तो इस पर गौर करने की जरूरत है कि मौत समय से पहले भी हो सकती है अगर हम अपनी आदतों में सुधार नहीं लाते। मौत के इस अंतिम सत्य को स्वीकार करने के बावजूद इतना जरूरी है कि हम इस बात का ध्यान रखें कि खुद इसके कारक को गले नहीं लगाएं।
आश्चर्य की बात है कि हमें मौत से बचाने के लिए हर वर्ष इस बात को याद रखने की जरूरत पड़ती है कि तम्बाकू जहर है और इसे खाने और चबाने से परहेज करना चाहिए। हर वर्ष मौत के इस सौदागर से बचने की कसमें खाई जाती हैं और नतीजा कुछ नहीं निकलता। सिगरेट पीने वाले हर फिक्र को धुएं में उड़ाते चले जाते हैं। कैंसर जिस तरह से महामारी का रौद्र रूप धारण करता जा रहा है, उससे सिर्फ तम्बाकू दिवस मनाने से ही काम नहीं चलेगा। महज दिवस मनाने की औपचारिकता निभाते रहे तो हम कैंसर से नहीं बच पाएंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार तम्बाकू के कहर से हर साल 60 लाख लोगों की जान जा रही है और लोग सतर्क नहीं हुए तो यह संख्या 80 लाख के पार जा सकती है। भारत में हर साल डेढ़ से दो लाख लोग कैंसर की चपेट में आते हैं। इन लोगों में 70 प्रतिशत तम्बाकू का सेवन अलग-अलग तरीके से करने वाले लोग भी शामिल हैं।
समाज का एक तबका बीमारियों की गिरफ्त में आकर दर्दनाक मौत मरने के लिए मजबूर है। सिगरेट, तम्बाकू, गुटखों के पैकेटों पर चेतावनी लिखी होती है कि तम्बाकू जानलेवा है और इससे कर्क रोग होने का खतरा है परन्तु क्या कैंसर पर मौत का खतरा सामने देखकर लोग इसका सेवन करने से बच रहे हैं। इसका अर्थ यही है कि लोग अभी तक जागरूक नहीं हैं तो फिर चेतावनियों से क्या होगा। आखिर जुर्माने का खतरा देखकर और दुर्घटना की परवाह किए बिना लोग चौराहे पर रैड लाइट क्रास करते ही हैं परन्तु यह मामला भी हमारी जिन्दगी का है और परिवार के प्रति अपने दायित्व बोध का है। यह रैड लाइट क्रास की तो सामने तो जुर्माना नहीं मौत है। केन्द्र और राज्य सरकारें तम्बाकू उत्पादों से बचने के लिए करोड़ों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर देती हैं, सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर पाबंदी है।
कई राज्यों में गुटखे पर प्रतिबंध है लेकिन बाजार में सब कुछ मिलता है। खुलेआम जहर बिक रहा है लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा। तम्बाकू विरोधी अभियानों पर दुनिया के देश जितना खर्च करते हैं, उससे पांच गुणा ज्यादा वे तम्बाकू पर टैक्स लगाकर कमाते हैं। दुनिया की मात्र पांच फीसदी आबादी धूम्रपान को हतोत्साहित करने के काम में लगी है। आजकल तो युवतियों और महिलाओं को भी सिगरेट का सेवन करते देखा जा सकता है। सिगरेट पीना पहले शौक होता है फिर आदत बन जाती है, आदत के बाद मजबूरी फिर बीमारी।
जब तम्बाकू जलता है तो वह टार नामक एक विशिष्ट पदार्थ को पैदा करता है जो धुएं के साथ फेफड़ों में जाता है। टार के प्रत्येक कण में नाइट्रोजन, आक्सीजन, हाईड्रोजन कार्बन डाईआक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड और कई उडऩशील और अर्ध उडऩशील कार्बनिक रासायन होते हैं। सघनित होने पर टार एक चिपकने वाला भूरा पदार्थ बन जाता है। यह दांतों ही नहीं वरन फेफड़ों पर भी असर छोड़ता है। फेफडों द्वार अवशोषित टार वहां की कोशिकाओं की मृत्यु का कारण बनता है। यहीं से कैंसर की शुरूआत होती है। सिगरेट के जरिये एक व्यक्ति 48 ज्ञात कैंसरोत्पादकों का सेवन करता है।
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर आप ठान लीजिए। अभी भी देर नहीं हुई है। जब जागो तभी सवेरा। तम्बाकू उत्पादों को त्याग दीजिए। भीतर की तलब आपको सिगरेट पीने को मजबूर जरूर करेगी लेकिन संकल्प शक्ति मजबूत बनाए रखें। कुछ दिन बाद आप पर सकारात्मक असर होने लगेगा और भीतर से आप शांति महसूस करने लगोगे। मौत तो ठीक है लेकिन तम्बाकू से नहीं। जीवन के लिए धुएं का कहर कम होना ही चाहिए।
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